बोर का परमाणु मॉडल के बारे में – हिंदी में जानकारी

नाभिक की रचना प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन से होती है। नाभिक का द्रव्यमान प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन पर निर्भर करता हैं, जबकि नाभिक का धनावेश केवल प्रोटॉनों के कारण होता है। नाभिक में उपस्थित सभी मूल कणों को न्यूक्लिऑन (Nucleons) कहते हैं। प्रमुख न्यूक्लिऑन प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन हैं। समान आवेशों में प्रतिकर्षण (Repulsion) तथा विपरीत आवेशों में आकर्षण (Attraction) होता है।

प्रोटॉन-प्रोटॉन के बीच प्रतिकर्षण होते हुए भी न्यूक्लिऑन आपस में बँधे रहते हैं, इससे पता लगता है कि नाभिक के भीतर कुछ अत्यन्त प्रबल बल कार्य करते हैं, जो न्यूक्लिऑनों को परस्पर बाँधे रखते हैं। ऐसे बलों को नाभिकीय बल (Nuclear force) कहते हैं।

नाभिक पर कुल धनात्मक विद्युत आवेश उसमें उपस्थित प्रोटॉनों की संख्या के बराबर होता है। भारी तत्वों के परमाण्वीय नाभिक अस्थायी होते हैं तथा इनका स्वतः क्षय होता रहता है। फलस्वरूप इनमें से विभिन्न प्रकार के विकिरणों का उत्सर्जन होता रहता है। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि परमाण्वीय नाभिक की संरचना सरल न होकर अत्यन्त जटिल होती है।

बोर का परमाणु मॉडल (Bohr’s Atomic Model)

बोर का परमाणु मॉडल के बारे में हिंदी में जानकारी

डेनिस वैज्ञानिक नील्स बोर (Neils Bohr) ने रदरफोर्ड द्वारा प्रस्तुत नाभिकीय मॉडल की कमियों को दूर किया। उन्होने रदरफोर्ड के नाभिकीय सिद्धांत पर यह दोष लगाया कि ऊर्जा उत्सर्जन के कारण इलेक्ट्रॉन अपनी कक्षा छोटी करते जाएँगे.

अन्त में नाभिक में पहुँचकर अपना अस्तित्व नष्ट कर देंगे। उन्होंने यह दोष क्वाण्टम सिद्धांत (Quantum theory) की सहायता से दूर किया।

बोर की अवधारणाएँ (Bohr’s Assumptions)

प्रत्येक कक्षा की ऊर्जा की मात्रा निश्चित होती है, इसलिए इसको अचर अवस्था ( Stationary state) या ऊर्जा स्तर (Energy level) अथवा स्थायी कक्षा (Stable orbit) कहते हैं।

इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर स्थिर (Fixed) या अचर स्थायी कक्षाओं को क्रम से = 1, 2, 3, 4, आदि पूर्ण संख्याओं द्वारा या K, L, M, N, आदि अक्षरों द्वारा प्रदर्शित करते हैं। नाभिक के निकटतम जो स्थायी कक्षा होती है, उसके लिए = 1 चित्र 13.12 बोर का परमाणु मॉडल होता है, इस कक्षा को K-कक्षा या K-कोश भी कहते हैं।

एक इलेक्ट्रॉन, जो किसी निश्चित कक्षा या ऊर्जा स्तर में घूमता है, वह बिना ऊर्जा खोए उसी कक्षा में घूम सकता है, परन्तु जब वह एक ऊर्जा स्तर से दूसरे पर कूदता है तो ऊर्जा उत्सर्जन केवल क्वाण्टा (Quanta) में होता है। बोर के विचार का समर्थन प्लैंक के क्वाण्टम सिद्धांत द्वारा किया गया। इस सिद्धांत के अनुसार ऊर्जा क्वाण्टम में चलती है।

विभिन्न कक्षाओं में इलेक्ट्रॉनों का वितरण (Distribution of Electrons in Different Orbits) परमाणु में इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों और विभिन्न कक्षाओं में घूमते रहते हैं। परमाणु की विभिन्न कक्षाओं (जिन्हें प्रथम कक्षा से क्रमश: K, L, M, N, …….द्वारा व्यक्त किया जाता है) में इलेक्ट्रॉनों की व्यवस्था को उस तत्व का (Electronic configuration) कहते हैं।

परमाणु की विभिन्न कक्षाओं में इलेक्ट्रॉनों के वितरण की योजना सर्वप्रथम लेंगम्यूर (Langmuir) ने 1919 ई. में प्रस्तुत की। इस योजना के अनुसार प्रथम, द्वितीय, तृतीय एवं चतुर्थ आदि कक्षाओं में क्रमश: 2, 8, 18, 32 इलेक्ट्रॉन होने चाहिए, परन्तु यह योजना सर्वमान्य न हो सकी।

बोर-बरी नियम (Bohr-Bury Rules)

लेंगम्यूर योजना में नील्स बोर तथा बरी ने 1921 ई. में संशोधन किया तथा इन्होंने परमाणु की विभिन्न कक्षाओं में इलेक्ट्रॉनों का वितरण बताने के लिए कुछ नियम निर्धारित किए जिन्हें ओर खरी नियम ( Bohr Bury Rule) कहते हैं। इस योजना की प्रमुख बातें निम्नलिखित हैं-

परमाणु की किसी भी कक्षा (Orbit or Shell) में इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम संख्या 25 होती है, जहाँ ” कक्षा की संख्या है.

प्रथम कक्षा (K), n=1 में इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम संख्या = 2n2= 2×12 = 2.

द्वितीय कक्षा (L), n = 2 में इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम संख्या = 2 = 2×22= 8.

तृतीय कक्षा (M). n 3 में इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम संख्या = 21 = 2×32 = 18.

चतुर्थ कक्षा (N), n4 में इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम संख्या = 27 = 2×42 = 32.

यह आवश्यक नहीं है कि नियम (i) के अनुसार किसी कक्षा में इलेक्ट्रॉनों की संख्या पूरी होने पर है उसके बाद वाली कक्षा में इलेक्ट्रॉन जाएँ। वस्तुतः जब किसी कक्षा में 8 इलेक्ट्रॉन हो जाते हैं तो नई कक्षा आरम्भ हो जाती है।

परमाणु की बाह्यमत कक्षा (Outermost orbit) में 8 से अधिक इलेक्ट्रॉन तथा इससे पहले वाली कक्ष (Penultimate orbit) में 18 से अधिक इलेक्ट्रॉन नहीं हो सकते।

सबसे बाहरी कक्षा में 2 से अधिक और उससे पहले वाली कक्षा में 9 से अधिक इलेक्ट्रॉन तब तक नहीं हो सकते जब तक कि बाहर से तीसरी कक्षा में नियम (i) के अनुसार अधिकतम इलेक्ट्रॉन न हो जाएँ।

परमाणु संख्या अथवा परमाणु क्रमांक (Atomic Number)

किसी तत्व के परमाणु के नाभिक में उपस्थित प्रोटॉनों की संख्या को उस तत्व का परमाणु क्रमांक (Atomic mumber) कहते हैं। किसी तत्व के गुणधर्म उसके परमाणु क्रमांक पर ही निर्भर होते हैं। इंग्लिश वैज्ञानिक मोजले (Mosley) ने 1913 ई. में अपने प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध किया कि तत्व का मूल गुण परमाणु क्रमांक है, न कि परमाणु भार ।

अतः किसी तत्व के नाभिक में स्थित धनावेश इकाइयों की संख्या को उस तत्व का परमाणु क्रमांक (Atomic number, Z) कहते हैं। परमाणु विद्युत उदासीन होता है; अतः प्रोटॉनों की संख्या इलेक्ट्रॉनों की संख्या के बराबर होती है। इसलिए इलेक्ट्रॉनों की संख्या भी परमाणु क्रमांक के बराबर होती है।

परमाणु क्रमांक का महत्व (Importance of Atomic Number)

(1). परमाणु संरचना ज्ञात करने में (In determination of atomic structure ) – परमाणु क्रमांक की सहायता से परमाणु के कक्षों में इलेक्ट्रॉनों की संख्याएँ निर्धारित की जाती हैं तथा प्रोटॉनों का ज्ञान होने पर परमाणु भार की सहायता से नाभिक में न्यूट्रॉनों की संख्याएँ भी ज्ञात हो जाती हैं।

(2). आवर्त सारणी के विकास में (In the development of periodic table) – मेण्डेलीफ की मूल आवर्त सारणी में कई दोष थे, जिन्हें परमाणु क्रमांक की सहायता से दूर किया गया.

समस्थानिकों का स्थान, भारी तत्वों को हल्के तत्वों से पहले रखा जाना । नये तत्वों की खोज में (In the discovery of new elements) – मेण्डेलीफ ने मूल आवर्त सारणी में कहीं-कहीं रिक्त स्थान छोड़ दिए थे। बाद में परमाणु क्रमांक की सहायता से नए तत्वों की खोज हो गई।

द्रव्यमान संख्या (Mass Number)

किसी तत्व के द्रव्यमान संख्या (A), उसके परमाणु के नाभिक में उपसिथत प्रोटॉनों और न्यूट्रॉनों की संख्या के बराबर होती है।

प्रोटान तथा न्यूट्रॉन के द्रव्यमान (क्रमश: 1.0007 amu तथा 1.0008 amu) निकटतम पूर्णांक में amu अतः यदि नाभिक में उपस्थित प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन के सम्पूर्ण द्रव्यमान को निकटतम पूर्णांक में व्यक्त किया जो तो वह संख्या द्रव्यमान संख्या के बराबर होती है।

अतः किसी तत्व को द्रव्यमान संख्या, उसके नाभिक के मूल कर्णी (प्रोटॉनों + न्यूट्रॉनों) की संख्या एवं द्रव्यमानों के योग को परमाणु द्रव्यमान कहते हैं। इसको amu से व्यक्त करते हैं। (परमाणु द्रव्यमान इकाई (amu) मात्रक में व्यक्त परमाण्वीय द्रव्यमान (atomic mass) को ही परम्परागत में परमाणु भार (atomic weight) कहा जाता है। ) उदाहरणार्थ- 19K30 परमाणु के नाभिक में 19 प्रोटॉन तथा 20 न्यूट्रॉन होते हैं; अतः पोटैशियम की द्रव्यमान संख्या 19 + 20 = 39 है।

किसी परमाणु की द्रव्यमान संख्या उस परमाणु के नाभिक में उपस्थित न्यूक्लिऑनों (नाभिकीय कणों) की कुल संख्या को प्रदर्शित करती है। द्रव्यमान संख्या तत्व का मौलिक गुण नहीं है। एक ही तत्व के भिन्न-भिन्न परमाणुओं की द्रव्यमान संख्याएँ भिन्न-भिन्न हो सकती हैं (समस्थानिक) तथा भिन्न-भिन्न तत्वों के परमाणुओं की द्रव्यमान संख्याएँ समान (समभारी) हो सकती हैं।

नोट- किसी उदासीन परमाणु के आयन में परिवर्तन होने पर उसके प्रोटॉनों व न्यूट्रॉनों की संख्याएँ अप्रभावित रहती हैं, जबकि इलेक्ट्रॉनों की संख्याएँ परिवर्तित हो जाती है; अतः धनायन बनने पर धनात्मक आवेश की संख्या

के बराबर इलक्ट्रॉनों की संख्याओं में कमी हो जाती है, जबकि ऋणायन बनने पर ऋणात्मक आवेश की संख्या के बराबर इलेक्ट्रॉनों की संख्याओं में वृद्धि हो जाती है।

परमाणु भार तथा द्रव्यमान संख्या में सम्बन्ध

चूँकि प्रोटॉन एवं न्यूट्रॉन का सापेक्ष भार लगभग 1 होता है तथा इसकी तुलना में इलेक्ट्रॉन का भार नगण्य होता है; अतः किसी परमाणु का परमाणु द्रव्यमान (परमाणु भार) उसकी द्रव्यमान संख्या के लगभग बराबर होता है।

परमाणु क्रमांक तथा द्रव्यमान संख्या में सम्बन्ध

हम जानते हैं कि किसी परमाणु का परमाणु क्रमांक (Z) उस परमाणु के नाभिक में प्रोटॉनों की कुल संख्या के बराबर होता है तथा परमाणु की द्रव्यमान संख्या (1) परमाणु नाभिक में उपस्थिति प्रोटॉनों और न्यूट्रॉनों की कुल संख्या के बराबर होती है।

परमाणु-प्रतीक का निरूपण (Representation of Symbol of Atom)

किसी तत्व के परमाणु-प्रतीक का निरूपण करने के लिए तत्व के प्रतीक के नीचे बाई और उस तत्व की परमाणु संख्या और प्रतीक के ऊपर दाईं ओर उस तत्व की द्रव्यमान संख्या लिखते हैं।

डाल्टन का यह कथन कि “एक तत्व के सभी परमाणु सब तरह से समान होते हैं” – सत्य नहीं है। कुछ तत्वों के ऐसे भी रूप प्राप्त हो सकते हैं जिनके परमाणुओं के परमाणु क्रमांक तो समान हों, परन्तु परमाणु भार भिन्न-भिन्न हों । तत्व के ऐसे परमाणुओं को, जिनके नाभिक में प्रोटॉन की संख्या तो समान हो, परन्तु न्यूट्रॉन की संख्या भिन्न-भिन्न हो, समस्थानिक (isotopes) कहते हैं।

अतः किसी तत्व के वे परमाणु, जिनके परमाणु भार भिन्न-भिन्न होते हैं, समस्थानिक कहलाते हैं। अधिकांश तत्व दो या दो से अधिक समस्थानिकों के मिश्रण होते हैं। जैसे-हाइड्रोजन के तीन, ऑक्सीजन के तीन और क्लोरीन के दो समस्थानिक होते हैं।

उदाहरण 1. हाइड्रोजन के समस्थानिक-हाइड्रोजन के तीन समस्थानिक ज्ञात हैं। तीनों के परमाणु क्रमांक एक हैं, परन्तु प्रत्येक के नाभिक में न्यूट्रॉन की संख्या भिन्न होने के कारण इनका भार 1, 2, तथा 3 होता है। इन समस्थानिकों को हल्की हाइड्रोजन या प्रोटियम (protium) या H’ ड्यूटीरियम (deuterium) H (या (D2) तथा ट्राइटियम (tritium) H’ (या TT) कहते हैं।

(2) समस्थानिकों में इलेक्ट्रॉनों तथा प्रोटॉनों की संख्याएँ समान तथा न्यूट्रॉनों की संख्याएँ भिन्न होती हैं।

(3) समस्थानिकों के भौतिक गुण; जैसे- घनत्व, क्वथनांक आदि भिन्न होते हैं।

(4) चूँकि एक तत्व के सभी समस्थानिकों की द्रव्यमान संख्याएँ भिन्न-भिन्न होती हैं, इसलिए इनके भैतिक गुण भी भिन्न-भिन्न होते हैं।

(5) चूँकि तत्व सभी समस्थानिकों का परमाणु क्रमांक समान होता है, इसलिए एक तत्व के सभी समस्थानिकों को आवर्त सारणी में एक ही स्थान पर रखा जाता है। (6) किसी एक तत्व के समस्थानिकों में से कुछ रेडियोऐक्टिव हो सकते हैं और कुछ नहीं। इसका मुख्य कारण

नाभिकीय संरचना का भिन्न-भिन्न होना है। जैसे-हाइड्रोजन के तीन समस्थानिकों (H’, H2 तथा H) में से केवल ट्राइटियम ((H) ही रेडियोऐक्टिव है। प्रोटियम (H) तथा ड्यूटीरियम (H2) रेडियोऐक्टिव नहीं हैं।

समभारिक (Isobars).

कुछ तत्वों के परमाणुओं का परमाणु भार तो एक ही होता है, परन्तु इनकी परमाणु संख्या में विभिन्नता होती है। ऐसे तत्व समभारी (Isobars) कहे जाते हैं। अतः विभिन्न तत्वों के परमाणु, जिनका परमाणु भार तो समान होता है, परन्तु उनकी परमाणु संख्या में अन्तर होता है, समभारी ( Isobars) कहलाते हैं।

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