ऊष्माधारिता तथा ताप परिवर्तन में सम्बन्ध की जानकारी

इससे स्पष्ट होता है कि किसी निश्चित वस्तु को ऊष्मा की एक निश्चित मात्रा 6 दी जाए या वस्तु से ली जाए, तो वस्तु के ताप में परिवर्तन, उसके पदार्थ की विशिष्ट ऊष्मा के व्युत्क्रमानुपाती होता है, अतः दो पदार्थों की समान मात्रा को ऊष्मा की समान मात्रा देने, जिस पदार्थ की विशिष्ट ऊष्मा अधिक होगी उसका ताप परिवर्तन दूसरे की अपेक्षा कम होगा।

अतः यदि पदार्थों की समान मात्राओं से समान समय में ऊष्मा की समान मात्राओं का आदान-प्रदान किया जाए, तो अधिक विशिष्ट ऊष्मा के पदार्थ का ताप-परिवर्तन कम तथा कम विशिष्ट ऊष्मा के पदार्थ का ताप-परिवर्तन अधिक होगा।

अवस्था परिवर्तन (Change of State)

पदार्थ ठोस, द्रव तथा गैस तीन भौतिक अवस्थाओं में पाया जाता है। साधारण ताप पर, प्रत्येक पदार्थ इन अवस्थाओं में से किसी एक अवस्था में पाया जाता है। परन्तु जब किसी ठोस को ऊष्मा दी जाती है, तब वह एक निश्चित ताप पर द्रव में बदल जाता है (जैसे—बर्फ का जल में बदलना) तथा द्रव को ऊष्मा देने पर वह एक निश्चित ताप पर गैस में बदल जाता है (जैसे- जल का भाप में बदलना)।

State
State

इसके विपरीत गैस को ठण्डा करने पर वह एक निश्चित ताप पर द्रव में बदल जाती है (जैसे- भाप का जल में बदलना) और द्रव, ठोस अवस्था में परिवर्तित हो जाता है; जैसे—जल का बर्फ में बदलना।

अवस्था परिवर्तन पर दाब तथा अपद्रव्यों का प्रभाव

(i) दाब का प्रभाव (Effect of Pressure)– जो ठोस पदार्थ गलने पर आयतन में बढ़ते हैं; उनका गलनांक बाह्य दाब के बढ़ने पर कुछ बढ़ जाता है; जैसे—मोम, नैफ्थेलीन आदि। इसके विपरीत जो ठोस पदार्थ गलने पर सिकुड़ते हैं; उनका गलनांक बाह्य दाब के बढ़ने पर कुछ कम हो जाता है; जैसे— बर्फ ।

(ii) क्वथनांक का प्रभाव (Effect of Boiling Point)- किसी द्रव के क्वथनांक पर भी बाह्य दाब का बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। दाब कम होने पर क्वथनांक नीचा तथा दाब बढ़ने पर क्वथनांक ऊँचा हो जाता है।

इस प्रकार जल का दाब कम करके जल को 100°C से नीचे ताप पर भी उबाल सकते हैं, जबकि दाब अधिक करके जल को 100°C से ऊँचे ताप पर उबाला जा सकता है। पहाड़ों पर वायुमण्डलीय दाब कम होने के कारण जल का क्वथनांक कम होता है, अतः पहाड़ों पर जल शीघ्र उबलने लगता है और वाष्प बन जाता है। इसलिए पहाड़ों पर दाल-चावल पकाना कठिन होता है।

(iii) अपद्रव्यों का प्रभाव (Effect of Impurities)— किसी द्रव में कोई घुलनशील पदार्थ मिला होने से उसका हिमांक प्रायः कम हो जाता है; जैसे—0°C पर पिघलती बर्फ में कुछ नमक, शोरा आदि मिलाने से बर्फ का गलनांक (अथवा जल का हिमांक) 0°C से घटकर 22°C तक कम हो जाता है।

ऐसे मिश्रण को हिम मिश्रण (Freezing mixture) कहते हैं। इस मिश्रण का उपयोग बर्फ, कुलफी आदि जमाने के लिए किया जाता है। यदि साधारण नमक (NaCl) के स्थान पर बर्फ में CaCh मिलाया जाए तो जल का हिमांक-55°C तक गिर जाता है।

गलनांक तथा गुप्त ऊष्मा (Melting Point and Latent Heat)

जब किसी ठोस को गर्म करते हैं तो उसका ताप बढ़ने लगता है और एक नियत उच्च ताप पर ठोस द्रव में बदलने लगता है। इस समय ठोस को दी गई ऊष्मा ठोस का ताप नहीं बढ़ाती बल्कि सम्पूर्ण ऊष्मा ठोस को द्रव में बदलने में व्यय हो जाती.

इस ऊष्मा को गुप्त ऊष्मा (Latent Heat) कहते हैं। इस समय ठोस का ताप स्थिर रहता है, अतः “जिस नियत ताप पर कोई ठोस द्रव में बदलता है उसे गलन अथवा ठोस का गलनांक कहते हैं। “

इसी प्रकार जब किसी द्रव को गर्म करते हैं तो प्रारम्भ में द्रव का ताप बढ़ता है, परन्तु कुछ समय बाद द्रव का ताप स्थिर हो जाता है और द्रव उबलने लगता है। इस प्रकार उबलते हुए द्रव को दी गई ऊष्मा द्रव का ताप नहीं बढ़ाती बल्कि यह ऊष्मा द्रव को उबालने में व्यय हो जाती है।

इस ऊष्मा को भी गुप्त ऊष्मा कहते हैं; अतः “स्थिर ताप (गलनांक) पर किसी पदार्थ के एकांक द्रव्यमान की अवस्था परिवर्तन के लिए आवश्यक ऊष्मा की मात्रा को उस पदार्थ की गुप्त ऊष्मा कहते हैं।”

गुप्त ऊष्मा के प्रकार

चूँकि अवस्था परिवर्तन दो प्रकार की होती है, इसीलिए गुप्त ऊष्मा दो प्रकार की होती है-
(1) गलन (बर्फ) की गुप्त ऊष्मा
(2) वाष्पन की गुप्त ऊष्मा

(1) गलन (बर्फ) की गुप्त ऊष्मा (Latent Heat of Melting) — “किसी पदार्थ के एकांक द्रव्यमान को बिना ताप बदले, ठोस अवस्था से द्रव अवस्था में (अथवा द्रव अवस्था से ठोस अवस्था में) बदलने के लिए आवश्यक ऊष्मा की मात्रा को उस पदार्थ की गलन (बर्फ) की गुप्त ऊष्मा कहते हैं।”

इसे ‘L’ से व्यक्त करते हैं। इसका मात्रक कैलोरी प्रति ग्राम अथवा किलो कैलोरी प्रति किग्रा अथवा जूल प्रति किग्रा है; जैसे—बर्फ की गुप्त ऊष्मा 80 किलोकैलोरी/किग्रा है।

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उदाहरण- बर्फ के गलन की गुप्त ऊष्मा 80 कैलोरी/ग्राम है। इसका अर्थ यह है कि 1 ग्राम बर्फ 0°C पर गलने के लिए 180 कैलोरी ऊष्मा लेता है अथवा 1 ग्राम जल 0°C पर जमने पर 80 कैलोरी ऊष्मा देता है। यदि 1 ग्राम ठोस पदार्थ को उसी ताप पर द्रव में बदला जाए.

(2) वाष्पन की गुप्त ऊष्मा (Latent Heat of Vaporisation) — इसका मात्रक कैलोरी प्रति ग्राम अथवा किलोकैलोरी प्रति किग्रा अथवा जूल प्रति किग्रा है; जैसे- भाप की गुप्त ऊष्मा 539 किलोकैलोरी प्रति किग्रा है।

उदाहरण— जलवाष्प की गुप्त ऊष्मा 539 कैलोरी/ग्राम है। इसके अर्थ है कि 1 ग्राम जल 100°C पर भाप में बदलने के लिए 539 कैलोरी ऊष्मा लेता है अथवा 1 ग्राम भाप 100°C पर द्रवित होने में 539 कैलोरी ऊष्मा देती है।

गलन अथवा बर्फ की गुप्त ऊष्मा का दैनिक जीवन पर प्रभाव

1. पहाड़ों पर बर्फ का धीरे-धीरे पिघलना ।

2. ओलों की वर्षा के बाद वायुमण्डल का ताप कम होना ।

3. बर्फ के जल की अपेक्षा दाँतों को आइसक्रीम अधिक ठण्डी लगना।

4. ठण्डे देशों में झील तथा तालाबों के जल का धीरे-धीरे जमना ।

वाष्पन की गुप्त ऊष्मा का दैनिक जीवन पर प्रभाव

1. उबलते जल की तुलना में उसी ताप की भाप से जलना अधिक पीड़ादायक होता है।

2. किसी पदार्थ की वाष्पन की गुप्त ऊष्मा उसके गलन की गुप्त ऊष्मा से अधिक होती है।

ठोस के अणुओं की ऊर्जा न्यूनतम होती है और वे एक नियमित ज्यामितीय आकृति के अनुरूप व्यवस्थित होते हैं, जबकि द्रव के अणुओं की स्थिति अनिश्चित होती है। जब ठोस का ताप बढ़ाया जाता है तो उसके अणुओं की ऊर्जा बढ़ती जाती है और अन्त में एक स्थिति ऐसी आती है जब अणुओं की नियमित ज्यामितीय आकृति के अनुरूप व्यवस्था भंग हो जाती है.

अणु द्रव की सीमा के भीतर मुक्त रूप से घूमने लगते हैं। अणुओं की नियमित व्यवस्था को भंग करने के लिए प्रति एकांक द्रव्यमान आवश्यक ऊष्मा को गलन की गुप्त ऊष्मा कहते हैं।

द्रव के अणुओं में इतनी ऊर्जा होती है कि वे द्रव की परिसीमा के भीतर घूम सकें, परन्तु इतनी ऊर्जा नहीं होती है कि वे द्रव की सतह को छोड़कर बाहर चले जाएँ। जब द्रव का ताप बढ़ाया जाता है तो एक निश्चित ताप पर उसके अणु एक-साथ द्रव की सतह को छोड़कर बाहर जाने लगते हैं।

यह घटना जिस ताप पर होती है उसे क्वथनांक कहते हैं। इस क्रिया के लिए प्रति एकांक द्रव्यमान आवश्यक ऊष्मा को क्वथन अथवा वाष्पन की गुप्त ऊष्मा कहते हैं।

कैलोरीमिति का सिद्धान्त (Principle of Calorimetry)

किसी एक वस्तु से दूसरी वस्तु को स्थानान्तरित ऊष्मा के प्रायोगिक मापन को कैलोरीमिति कहते हैं। कैलोरीमिति की अनेक विधियाँ हैं। इसमें मिश्रण विधि अधिक प्रचलित है।

जब भिन्न-भिन्न ताप पर दो वस्तुएँ एक-दूसरे के सम्पर्क में लाई जाती हैं अथवा मिश्रित की जाती हैं तो ऊष्मा का स्थानान्तरण अधिक ताप वाली वस्तु से कम ताप वाली वस्तु की ओर होता है और यह क्रिया तब तक चलती रहती है जब तक कि दोनों वस्तुओं का ताप समान न हो जाए।

कैलोरीमापी अथवा ऊष्मामापी (Calorimeter)

कैलोरीमिति की क्रिया में प्रयोग किए जाने वाले उपकरण को कैलोरीमापी अथवा ऊष्मामापी कहते हैं। यह ताँबे का बना बेलनाकार बर्तन होता है। इसकी बाहरी सतह चमकदार कर दी जाती है.

इस बर्तन को लकड़ी के बड़े डिब्बे में रखकर खाली स्थान में ऊष्मारोधी पदार्थ; जैसे – रुई, नमदा आदि भर देते हैं। इससे चालन तथा संवहन विधि से ऊष्मा के संचरण को रोका जा सकता है। इसके ऊपर लकड़ी का ढक्कन लगाकर हवा में संवहन द्वारा ऊष्मा का क्षय रोका जा सकता है। कैलोरीमापी में रखे पदार्थ को हिलाने के लिए ताँबे के एक मुड़े हुए तार (विलोडक) का उपयोग करते हैं।

ऊष्मामापी का जल-तुल्यांक (Water Equivalent of Calorimeter)— कैलोरीमिति की क्रिया में कुछ ऊष्मा कैलोरीमापी स्वयं भी अवशोषित करता है। कैलोरीमापी द्वारा अवशोषित की गई ऊष्मा की गणना को सरल बनाने के लिए कैलोरीमापी के द्रव्यमान को उसके तुल्य

जल के द्रव्यमान में बदल लेते हैं तथा जल के इस द्रव्यमान को कैलोरीमापी का जल-तुल्यांक कहा जाता है अर्थात् “ऊष्मामापी का जल- तुल्यांक जल के उस द्रव्यमान के बराबर है जिसका ताप 1°C बढ़ाने के लिए ऊष्मा की उतनी ही मात्रा की आवश्यकता होती है जितनी कि ऊष्मामापी का ताप 1°C बढ़ाने के लिए आवश्यक है।”

माना किसी ऊष्मामापी का विलोडक सहित द्रव्यमान mm ग्राम है तथा उसके पदार्थ की विशिष्ट ऊष्मा है, तब ऊष्मामापी का जल-तुल्यांक W = m x s ग्राम.

जल-तुल्यांक तथा ऊष्माधारिता में अन्तर— यहाँ यह ध्यान देने योग्य है कि यद्यपि जल-तुल्यांक तथा ऊष्माधारिता के संख्यात्मक मान बराबर होते हैं तथापि इनके मात्रक भिन्न-भिन्न होते हैं। ऊष्माधारिता का मात्रक कैलोरी °C होता है, जबकि जल – तुल्यांक का मात्रक ग्राम अथवा किलोग्राम है।

आर्द्रता (Humidity)

वायुमण्डल के प्रत्येक स्थान पर, प्रत्येक समय पर जलवाष्प उपस्थित रहती है। यह जलवाष्प पृथ्वी पर स्थित तालाब, नदी, झील तथा समुद्र के जल के वाष्प में बदलने के कारण होती है।

आर्द्रता के उदाहरण– (1) वर्षा ऋतु के मौसम में नमक खुले में रखने पर पसीज जाता है। यह वायु में उपस्थित जलवाष्प के कारण ही सम्भव है; क्योंकि वर्षा ऋतु के मौसम में वायुमण्डल में जलवाष्म की मात्रा अधिक होती है। यदि जलवाष्प की मात्रा कम है तो वायुमण्डल शुष्क कहलाता है।

(2) बर्फ से भरे गिलास के बाहर जल की बूँदें एकत्रित हो जाती हैं, इसका कारण यह है कि गिलास की सतह के सम्पर्क में आने वाली वायु की वाष्प संघनित होकर गिलास की सतह पर बूँदों के रूप में जम जाती है।

ओसांक (Dew Point)

किसी स्थिर ताप पर वायुमण्डल में उपस्थित जल वाष्प वायु को संतृप्त करने के लिए पर्याप्त नहीं होती है। अब यदि वायुमण्डल में जल वाष्प की मात्रा स्थिर रखें और ताप को धीरे-धीरे कम करते जाएँ, तो किसी एक ताप पर वही जल वाष्प की मात्रा उस वायु को संतृप्त कर देगी। ताप को थोड़ा-सा और कम करने पर अतिरिक्त जल वाष्प पानी की बूँदों के रूप में आस-पास के पदार्थों पर संघनित होती है।

वह स्थिर ताप जिस पर वायु के किसी आयतन में उपस्थित जल वाष्प की मात्रा वायु के उसी आयतन को संतृप्त करने के लिए पर्याप्त हो, ओसांक कहलाता है।

आपेक्षिक आर्द्रता (Relative Humidity)

प्रायः वायुमण्डल के किसी आयतन में उपस्थित जलवाष्प की मात्रा वायु के उस आयतन को संतृप्त नहीं कर सकती। इसका अर्थ है कि वायु के उस आयतन में और अधिक जलवाष्प की मात्रा समा सकती है। यदि नियत ताप पर वायुमण्डल में जलवाष्प की मात्रा बढ़ाते जाएँ तो एक स्थिति ऐसी आती है, जब वायुमण्डल और अधिक जलवाष्प ग्रहण नहीं करता। इसे वायुमण्डल की संतृप्त अवस्था (Saturated stage) कहते हैं।

“किसी ताप पर वायु के किसी आयतन में उपस्थित जलवाष्प के द्रव्यमान (m) तथा उसी ताप पर वायु के उसी आयतन को संतृप्त करने के लिए आवश्यक वाष्प के द्रव्यमान (M) के अनुपात को वायु की आपेक्षित आर्द्रता कहते हैं।” प्राय: इसे प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है, अतः इस अनुपात को 100 से गुणा कर देते हैं।

गर्मियों में जब वायुमण्डल शुष्क होता है तो आपेक्षिक आर्द्रता कम होती है जिससे पसीना आसानी से सूख जाता है। बरसात में आर्द्रता अधिक होने के कारण कपड़े देर से सूखते हैं तथा पसीना भी नहीं सूख पाता है। 22°C व 25°C के बीच ताप के साथ 50% आपेक्षिक आर्द्रता को सुखद माना जाता है। यदि आपेक्षिक आर्द्रता 100% हो जाए तो इसका अर्थ है, वायुमण्डल अधिकतम जलवाष्प ग्रहण कर चुका है (संतृप्त है); अतः वाष्पीकरण नहीं होगा।

आपेक्षिक आर्द्रता नापने के लाभ (Merits of Measuring Relative Humidity)

(1) मौसम विज्ञानशालाओं में प्रतिदिन की आपेक्षिक आर्द्रता ज्ञात की जाती है। इससे मौसम का अनुमान लगाने में सहायता मिलती है। यदि आर्द्रता अधिक है तो वर्षा होने की सम्भावना रहती है।

(2) स्वास्थ्य विभाग को आर्द्रता जानने की आवश्यकता होती है, क्योंकि नम वायु में कुछ कीटाणु उत्पन्न होने लगते हैं।

(3) सूत के कारखानों में अधिक आर्द्रता की आवश्यकता होती है, क्योंकि वायु में नमी अधिक होने से सूत का धागा नहीं टूटता। अतः सूत के कारखानों में आवश्यक आर्द्रता को कृत्रिम साधनों से प्राप्त किया जाता है।

(4) वातानुकूलन में भी आपेक्षिक आर्द्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है।

ऊष्मा तथा कार्य की तुल्यता (Equivalence of Work and Heat)

जूल ने अपने प्रयोगों के आधार पर यह बताया कि ऊष्मा तथा कार्य (अर्थात् ऊर्जा) एक ही भौतिक राशि के दो रूप हैं। दैनिक जीवन में ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जिनसे स्पष्ट होता है कि कार्य तथा ऊष्मा दोनों के प्रभाव एकसमान हैं—

उदहारण 1. किसी बर्तन में रखे गए द्रव को गर्म करके अर्थात् ऊष्मा देकर उसके ताप को बढ़ाया जा सकता है। उसी द्रव को विलोडक द्वारा हिलाकर अर्थात् कार्य करके उसके ताप को बढ़ाया जा सकता है।

उदाहरण 2. किसी लोहे की कील को ऊष्मा देकर गर्म किया जा सकता है। उसी कील को हथौड़े द्वारा पीटकर अर्थात् कार्य करके भी गर्म किया जा सकता है।

उदाहरण 3. बर्फ के दो टुकड़ों को ऊष्मा देकर पिघलाया जा सकता है। उन्हीं दोनों टुकड़ों को कार्य करके भी पिघलाया जा सकता है। आपस में रगड़कर अर्थात्

उदाहरण 4. भाप के इंजन में कोयले के जलने से प्राप्त ऊष्मा द्वारा रेलगाड़ी चलाई जाती है अर्थात् ऊष्मा को यान्त्रिक कार्य में बदला जाता है।

उपर्युक्त उदाहरणों से स्पष्ट है कि कार्य तथा ऊष्मा को परस्पर बदला जा सकता है। अतः “जब बिना तापान्तर के ऊर्जा का स्थानान्तरण एक वस्तु से दूसरी वस्तु में होता है तो वह कार्य कहलाता है तथा तापान्तर के कारण जब ऊर्जा का स्थानान्तरण होता है तो वह ऊष्मा कहलाती है।” इस प्रकार कार्य, ऊष्मा का ही एक रूप है।

कार्य तथा इससे उत्पन्न ऊष्मा के सम्बन्ध में वैज्ञानिक जूल ने एक नियम प्रतिपादित किया जिसे जूल का नियम कहते हैं। इसके अनुसार—

“यदि W अर्ग कार्य करने से H कैलोरी ऊष्मा उत्पन्न होती है अर्थात् व्यय कार्य (W) तथा उत्पन्न ऊष्मा (H) परस्पर अनुक्रमानुपाती होते हैं।”

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