रसायन की भाषा की पूरी जानकारी

तत्वों के लम्बे नाम के लिए प्रयुक्त किए जाने वाले संक्षिप्त चिन्ह प्रतीक (Symbol) कहलाते हैं। अब तक लगभग 112 तत्वों की जानकारी प्राप्त है। रसायन विज्ञान में ज्ञात इन सभी तत्वों के नामकरण का कोई आधार नहीं है। विभिन्न तत्वों के आविष्कारकों ने अपनी भाषा में प्रत्येक के नाम रखे हैं। तत्वों के नाम बहुत बड़े-बड़े हैं और इनके लिखने में समय लगता है और असुविधा होती है।

रासायनिक अभिक्रियाओं का उल्लेख करने में उनका पूरा नाम लिखना या बताना समय को नष्ट करना होता है। इसी कारण प्राचीनकाल से ही रसायनज्ञों ने प्रत्येक तत्व को संक्षिप्त रूप में अभिव्यक्त करने का प्रयास किया है। तत्वों के स्थान पर प्रयुक्त चिन्हों को ही प्रतीक कहा गया है; अतः तत्व के पूरे नाम के स्थान पर प्रयुक्त होने वाले उस संक्षिप्त रूप को प्रतीक (Symbol) कहते हैं जिससे तत्व के एक परमाणु का बोध होता है।

प्रतीकों की प्राचीन प्रणाली (Old System of Symbols)

सर्वप्रथम पन्द्रहवीं शताब्दी में प्राचीन ग्रीक दार्शनिकों ने भिन्न-भिन्न तत्वों के लिए अलग-अलग प्रतीक बनाए। पुराने समय के कीमियागरों (Alchemists) ने ग्रह तथा नक्षत्रों के काल्पनिक चित्रों द्वारा ही तत्वों के प्रतीकों का निरूपण किया। जैसे—सोने (Gold) को सूर्य से, चाँदी (Silver) को चन्द्रमा से, लोहे (Iron) को शनि ग्रह से इत्यादि । इसी प्रकार अन्य तत्वों को भी प्रदर्शित किया जाता था।

रसायन

1808 ई. में जॉन डाल्टन (John Dalton) नामक अंग्रेज वैज्ञानिक ने गोले के अन्दर वृत्त बनाकर भिन्न-भिन्न तत्वों के प्रतीक बनाए। गोले से उनका आशय यह था कि तत्व परमाणुओं से बने हैं, परन्तु इनको लिखने में असुविधा होती थी। इसलिए इस विधि को अमान्य ठहराया गया।

प्रतीकों की आधुनिक प्रणाली (Modern System of Symbols)

स्वीडन के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक जे.जे. बर्जीलियस ने 1814 ई० में तत्वों के प्रतीक लिखने की सरल एवं सुविधाजनक प्रणाली प्रस्तुत की। इन्होंने सर्वप्रथम तत्वों के प्रतीक लिखने के लिए अक्षरों का प्रयोग किया। इस प्रणाली के अनुसार,

(i) किसी तत्व को प्रदर्शित करने के लिए उसके अंग्रेजी नाम का पहला अक्षर प्रयोग में लाया जाता है।

(ii) जब तत्वों के नाम एक ही अक्षर से आरम्भ होते हैं, तो प्रत्येक के लिए अक्षर के साथ एक अन्य अक्षर लगा देते हैं और प्रथम अक्षर बड़ा लिखते हैं तथा दूसरा अक्षर छोटा लिखते हैं।

प्रतीक का अभिप्राय (Meaning of a Symbol)

‘प्रतीक’ का वास्तव में सुनिश्चित अर्थ होता है। प्रतीक के गुणात्मक (Qualitative) एवं परिमाणात्मक (Quantitative) दोनों ही अर्थ हो सकते हैं। किसी तत्व के प्रतीक से हमें निम्नलिखित तथ्यों का बोध होता है—

(1) प्रतीक से उस तत्व के एक परमाणु का बोध होता है; जैसे—प्रतीक H हाइड्रोजन के एक परमाणु को प्रदर्शित करता है।

(2) प्रतीक से उस तत्व के परमाणु भार के बराबर तत्व के द्रव्यमान का बोध होता है; जैसे— प्रतीक H हाइड्रोजन के परमाणु भार (1.008) के बराबर तत्व के द्रव्यमान को निरूपित करता है।

(3) द्रव्यमान की इकाई ग्राम होने पर तत्व का प्रतीक उस तत्व के एक ग्राम-परमाणु को निरूपित करता है। (4) प्रतीक का अभिप्राय तत्व के एक ग्राम परमाणु भार होने पर किसी तत्व का प्रतीक उस तत्व के 6.023 x 1023 परमाणुओं को निरूपित करता है। (यहाँ 6.023 x 1023. आवोगाद्रो संख्या है)

प्रतीक का महत्त्व (Significance of a Symbol)

तत्वों के प्रतीकों का गुणात्मक (Qualitative) एवं मात्रात्मक (Quantitative) दोनों दृष्टिकोण से महत्त्व है। उदाहरणार्थ- तत्व सोडियम का प्रतीक ‘Na’ है। Na दर्शाता है-

सोडियम तत्व को भार के अनुसार सोडियम के 23 भाग को भार की इकाई ग्राम होने पर 23 ग्राम सोडियम को । सोडियम के एक ग्राम-परमाणु को जिसका द्रव्यमान 23 ग्राम है। सोडियम के 6.023 x 1023 परमाणुओं को ।

किसी एक ही तत्व के परमाणु या विभिन्न तत्वों के परमाणु आपस में संयोग करके अणु बनाते हैं। इस प्रकार बने अणु को प्रतीकों द्वारा प्रकट करने वाला चिन्ह उसका रासायनिक सूत्र कहलाता है। किसी एक ही तत्व के परमाणु या विभिन्न तत्वों के परमाणु परस्पर संयोग करके अणु बनाते हैं।

रासायनिक सूत्रों के प्रकार (Types of Chemical Formulae)

रासायनिक सूत्र निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं-

1. मूलानुपाती सूत्र (Empirical Formula),

2. आण्विक सूत्र या अणुसूत्र (Molecular Formula)।

1. मूलानुपाती सूत्र (Empirical formulae)

मूलानुपाती सूत्र से किसी यौगिक के एक अणु में उपस्थित विभिन्न तत्वों के परमाणुओं की संख्याओं के सरल अनुपात को प्रदर्शित करते हैं। ग्लूकोज का आण्विक सूत्र CH2O है, इसमें कार्बन, हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन के परमाणुओं की संख्या का सरल अनुपात 1 : 2 : 1 है, परन्तु मूलानुपाती सूत्र CHO होगा। मूलानुपाती सूत्र CHO फॉर्मेल्डिहाइड को भी प्रदर्शित करता है।

हाइड्रोजन परॉक्साइड का आण्विक सूत्र H, O, है, इसमें हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन के परमाणुओं की संख्या का सरल अनुपात 1: 1 है, परन्तु मूलानुपाती सूत्र HO है। एक ही मूलानुपाती सूत्र बहुत-से यौगिकों का हो सकता है।आण्विक सूत्र या अणु सूत्र (Molecular formula) आण्विक सूत्र किसी यौगिक के एक अणु में उपस्थित विभिन्न तत्वों के परमाणुओं की वास्तविक संरचना को प्रदर्शित करता है।

ग्लूकोस का आण्विक सूत्र C.H2O है। इससे निष्कर्ष निकलता है कि ग्लूकोस के एक अणु में कार्बन के 6 परमाणु, हाइड्रोजन के 12 परमाणु तथा ऑक्सीजन के 6 परमाणु उपस्थित हैं।

हाइड्रोजन परॉक्साइड का आण्विक सूत्र HO, है। इससे निष्कर्ष निकलता है कि हाइड्रोजन परॉक्साइड के एक अणु में हाइड्रोजन के 2 परमाणु तथा ऑक्सीजन के 2 परमाणु उपस्थित हैं। यौगिक का अणुसूत्र एवं मूलानुपाती सूत्र परस्पर निर्मनलिखित प्रकार से सम्बन्धित है अणुभार मूलानुपाती सूत्र भार 1 यदि किसी यौगिक का अणुभार, मूलानुपाती सूत्र भार के बराबर होता है, तो यौगिक का मूलानुपाती सूत्र हो अणुसूत्र होता है।

अणुसूत्र का महत्त्व (Importance of Molecular Formula)

किसी यौगिक के आण्विक या रासायनिक सूत्र से निम्नलिखित बातों का बोध होता है—

(1) पदार्थ के एक अणु का बोध होता है।

(2) यौगिक में उपस्थित तत्वों का बोध होता है।

(3) यौगिक के एक अणु में द्रव्यमान की दृष्टि से विभिन्न तत्वों के अनुपात का बोध होता है। जैसे— जल (H2O) में हाइड्रोजन के 2 भाग, ऑक्सीजन के 16 भाग से संयोग करते हैं और जल का 18 भाग बनाते हैं। आण्विक सूत्र ज्ञात होने पर संयोगी परमाणुओं की संख्या ज्ञात हो जाती है।

कार्बन डाइऑक्साइड के आण्विक सूत्र CO, से ज्ञात होता है कि कार्बन डाइऑक्साइड के एक अणु में कार्बन का 1 परामाणु तथा ऑक्सीजन के 2 परमाणु हैं। यदि कोई यौगिक गैस है, तो अणुसूत्र 1 ग्राम-अणु के आयतन को भी प्रदर्शित करता है; क्योंकि किसी गैस के अणु भार की संख्या के बराबर ग्राम द्रव्यमान की गैस 1 ग्राम-अणु कहलाती है।

सामान्य दाब तथा ताप पर प्रत्येक गैस के 1 ग्राम अणु का आयतन 22.4 लीटर होता है। यदि किसी यौगिक के दाईं ओर जल के अणु भी लिखे हों, तो उससे यौगिक के एक अणु में उपस्थित क्रिस्टलन जल का भी बोध होता है।

संयोजकता (Valency)

संयोजकता (Valency) शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम फ्रैंकलैंड ने 1852 ई. में तत्वों के परमाणुओं की संयोग करने की क्षमता के लिए किया था। Valency शब्द लैटिन भाषा के Valentina शब्द से बना है। लैटिन भाषा में Valentina का अर्थ सामर्थ्य होता है, अतः किसी तत्व की संयोजकता उसकी रासायनिक संयोग करने की क्षमता अर्थात् संयोजन क्षमता को प्रदर्शित करती है।

फ्रैंकलैंड ने संयोजकता को एक पूर्ण संख्या में प्रदर्शित करने का सुझाव दिया। ऐसा करने के लिए हाइड्रोजन की संयोजकता 1 मानी गयी तथा संयोजकता की परिभाषा इस प्रकार दी किसी तत्व की संयोजकता हाइड्रोजन के परमाणुओं की वह संख्या है, जो उस तत्व के एक परमाणु से संयोग करती है।

उदाहरण–हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (HCI), जल (H2O), अमोनिया (NH,) तथा मेथेन (CH) में क्लोरीन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन तथा कार्बन की संयोजकताएँ क्रमश: 1, 2, 3 तथा 4 हैं।

संयोजकता सदैव पूर्ण संख्या होती है, एक संयोजकता वाले तत्व एक संयोजक, दो संयोजकता वाले तत्व द्विसंयोजक, तीन संयोजकता वाले तत्व त्रिसंयोजक तथा चार संयोजकता वाले तत्व चतुष्संयोजक कहलाते हैं।

परिवर्ती संयोजकता (Variable Valency)

बहुत-से तत्व ऐसे होते हैं, जिनकी एक से अधिक प्रकार की संयोजकता होती है। ऐसी संयोजकता को परिवर्ती संयोजकता कहते हैं।

यौगिकों के सूत्र बताने में संयोजकता की उपयोगिता

यदि कोई यौगिक दो तत्वों x तथा y के संयोग से बना हुआ है और उन तत्वों की संयोजकता ज्ञात है, तो यौगिक का सूत्र निम्न प्रकार से बनाया जा सकता है—

(i) दोनों तत्वों या मूलकों के संकेत पास-पास लिखते हैं। बाईं ओर धात्विक मूलक तथा दाईं ओर अधात्विक मूलक लिखते हैं।

(ii) यदि आवश्यकता हो, तो इन अंकों को उनके महत्तम समापवर्तक से भाग देते हैं।

(iii) मूलकों के संयोजकता अंकों को उनके ऊपर लिख देते हैं।

(iv) अब संयोजकता अंकों को परस्पर एक-दूसरे से बदल देते हैं। इस नियम को विकर्ण कहते हैं अर्थात् धनात्मक मूलक की संयोजकता को ऋण मूलक के नीचे और ऋणात्मक मूलक की संयोजकता को धन मूलक के नीचे लिख देते हैं।

सभी परमाणुओं तथा अणुओं में प्रोटॉनों एवं इलेक्ट्रॉनों की संख्या परस्पर समान होती है अर्थात् वे विद्युत-उदासीन होते हैं। कुछ विशेष अवस्थाओं में परमाणु अपने बाह्यतम इलेक्ट्रॉन कोश में से कुछ इलेक्ट्रॉनों को त्याग देता है या कुछ अतिरिक्त इलेक्ट्रॉनों को ग्रहण कर लेते हैं। ऐसे परमाणु या परमाणु-समूह को जिनमें प्रोटॉनों तथा इलेक्ट्रॉनों की संख्या परस्पर समान नहीं होती है, वे आवेशित होते हैं। इन आवेशित परमाणुओं को आयन कहते हैं। यदि परमाणु इलेक्ट्रॉन का त्याग करता है, तो वह धनायन कहलाता है और यदि परमाणु इलेक्ट्रॉन को ग्रहण करता है, तो वह ऋणायन कहलाता है।

द्वि-अंगी आण्विक यौगिकों का नामकरण (Naming of Diatomic Molecular Compound)

जब किसी यौगिक में किसी तत्व के एक से अधिक परमाणु होते हैं तो उनकी संख्या को व्यक्त करने के लिए एक संख्यात्मक पूर्वलग्न मोनो, डाइ, टेट्रा इत्यादि लगाते हैं। सारणी में कुछ ऐसे ही यौगिक दिए गए हैं।

पूर्वलग्न ग्रीक भाषा से सम्बन्धित होते हैं। सारणी से स्पष्ट है कि पूर्वलग्न के अन्त में ओ या ए को दूसरे स्वर अर्थात् – ओ या -ए से पहले हटा देते हैं; जैसे मोनोक्साइड, डाइऑक्सइड, पेन्टाक्साइड इत्यादि। इन्हें लिखते समय संख्यात्मक पूर्वलग्न तथा तत्व के नाम के बीच स्थान नहीं छोड़ते हैं।

द्वि-अंगी आण्विक यौगिकों में पूर्वलग्न का प्रयोग अति आवश्यक है; क्योंकि दो समान अधातुएँ कई यौगिक बना सकती हैं। जैसे- दो तत्व कार्बन तथा ऑक्सीजन मिलकर कार्बन मोनोक्साइड (CO) तथा कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) यौगिक बनाते हैं। इसी प्रकार नाइट्रोजन तथा ऑक्सीजन मिलकर NO, NO2, N, O, N, O, N2O4 तथा N, O, यौगिक बना सकते हैं। पहले तत्व के लिए पूर्वलग्न का प्रयोग नहीं करते जैसे- CO को कार्बन मोनोक्साइड लिखते हैं न कि मोनोकार्बन मोनोक्साइड ।

जब किसी यौगिक में प्रथम तत्व हाइड्रोजन होता है तो हाइड्रोजन से पहले पूर्वलग्न नहीं लगाते हैं। जैसे— H,S को हाइड्रोजन सल्फाइड पढ़ते हैं। कुछ द्वि-अंगों आण्विक यौगिकों को उनके साधारण नाम से भी जाना जाता है। जैसे—HO को जल के नाम से जानते हैं।

किसी तत्व का छोटे-से-छोटा कण परमाणु कहलाता है और वह रासायनिक अभिक्रियाओं में भाग लेता है। परमाणु अत्यन्त ही सक्ष्म होता है और इसका वास्तविक भार ज्ञात करना यदि असम्भव नहीं तो बहुत ही कठिन अवश्य एक परमाणु से कि है। तत्वों के परमाणु भारों से उनके वास्तविक भार का बोध नहीं होता, परन्तु उनके सापेक्ष भारों को ज्ञान होता है। हाइड्रोजन का परमाणु सबसे हल्का होता है।

इसलिए इसके परमाणु भार को इकाई मानकर अन्य तत्वों के सापेक्ष भार ज्ञात किए जाते हैं और इन भारों को परमाणु भार कहा जाता है। अतः किसी तत्व का परमाणु भार वह संख्या हैं जो प्रदर्शित करती है कि उस तत्व का एक परमाणु हाइड्रोजन के एक परमाणु से कितने गुना भारी है।

कुछ वैज्ञानिकों ने अपने प्रयोगों के आधार पर परमाणु भार की इकाई हाइड्रोजन के एक परमाणु के द्रव्यमान के स्थान पर ऑक्सीजन के परमाणु भार के सोलहवें भाग (1/ 16) को अधिक उपयुक्त माना है। इस मानक के आधार पर हाइड्रोजन का परमाणु भार 1.008 होता है।

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