यदि कोई वस्तु समय के साथ अपनी स्थिति बदलती है, तब समय के साथ उसकी स्थिति में परिवर्तन ही गति कहलाता है। किसी वस्तु में गति उत्पन्न करने के लिए किसी बाह्य प्रभाव की आवश्यकता होती है, जिसे बल कहते हैं। जैसे—बैलगाड़ी में गाड़ी को गतिमान करने के लिए बैल उसे खीचते हैं। पृथ्वी वस्तुओं को अपनी ओर खींचती है। रेलवे ट्रेन को इंजन खींचता है। साधारणतया बल में धक्का अथवा खिंचाव होता है, जो किसी वस्तु में गति उत्पन्न करता है या गति उत्पन्न करने का प्रयास करता है।
यह आवश्यक नहीं है कि बल वस्तु को सदैव गति प्रदान कर सके या सदैव वस्तु की स्थिति में परिवर्तन कर दे। जैसे- यदि हम किसी दीवार को धक्का दें, तब भी दीवार अपनी जगह पर रुकी रहती है। इसी प्रकार, यदि हम ट्रक को धकेलकर गति में लाना चाहें, तो हम असफल रहते हैं; परन्तु इसमें भी हमने बल का प्रयोग किया है। प्रत्येक वस्तु पर पृथ्वी भी एक बल आरोपित करती है।
बल लगाने की क्रिया सदैव दो वस्तुओं के बीच होती है। एक वस्तु जो बल लगती है तथा दूसरी जिस पर वह बल लगाया जाता है। केवल एक ही वस्तु के लिए बल का कोई अर्थ नहीं है।
बल के प्रभाव (Effects of Force)
उपर्युक्त विवेचना से स्पष्ट है कि बल के तीन प्रभाव हो सकते हैं-
(1) बल किसी गतिमान वस्तु की चाल बदल सकता है। बल रुकी हुई वस्तु को गति में ला सकता है अथवा गतिमान वस्तु को रोक सकता है।
(2) बल वस्तु की गति की दिशा बदल सकता है; जैसे क्रिकेट के खेल में बल्लेबाज अपने बल्ले से बल लगाकर गेंद को किसी भी दिशा में मोड़ देता है।
(3) बल द्वारा वस्तु का आकार बदल सकता है; जैसे बल लगाकर रबड़ की गेंद का आकार बदला जा सकता है। बल में दिशा व परिमाण दोनों होते हैं; अतः बल एक सदिश राशि हैं। बल का मात्रक किग्रा मीटर/सेकण्ड अथवा न्यूटन है।
सन्तुलित तथा असन्तुलित बल (Balanced and Unbalanced Forces)

बल दो प्रकार के होते हैं-
(1) सन्तुलित बल
(2) असन्तुलित बल
(I) सन्तुलित बल (Balanced Force)— जब किसी वस्तु पर एक साथ कई बल कार्य कर रहे हों और उनका परिणामी बल शून्य हो तो उन बलों को सन्तुलित बल कहते हैं। सन्तुलित बलों की अवस्था में यदि कोई वस्तु स्थिर है तो स्थिर रहेगी तथा यदि एकसमान गति कर रही है तो वह उसी प्रकार गति करती रहेगी जैसे कि वस्तु पर कोई बल कार्य ही न कर रहा हो। प्रकार सन्तुलित बलों के प्रभाव से वस्तु की स्थिति में परिवर्तन नहीं होता है.
फिर भी सन्तुलित बलों से वस्तु का आकार अथवा आकृति बदल जाती है; जैसे—–यदि रबड़ की एक गेंद को हथेलियों के बीच रखकर बराबर व विपरीत बल लगाएँ तो गेंद की आकृति बदल जाती है। यह गेंद गोल न रहकर चपटी-सी हो जाती है।
उदाहरण-यदि हम हाथ में सूटकेस लिए खड़े हों (चित्र 4.1) तो सूटकेस का भार F = mg नीचे को ओर कार्य करेगा। सूटकेस को स्थिर रखने के लिए इमें इतना ही बल F2 = F ऊपर की ओर लगाना होगा।
(2) असन्तुलित बल (Unbalanced Force ) — जब किसी वस्तु पर लगे अनेक बलों का परिणामी बल शून्य न हो तो उन बलों को असन्तुलित बल कहते हैं। यह बल, गति की दिशा तथा अवस्था (चाल) में परिवर्तन करता है।
उदाहरण–यदि हम हाथ में पकड़ा सूटकेस छोड़ दें (चित्र 4.1) तो यह नीचे गिर पड़ता है; क्योंकि अब सूटकेस पर नीचे की ओर कार्य करने वाला इसका भार F = mg * कार्य करेगा (हमारे द्वारा ऊपर की ओर लगाया गया बल शून्य हो जाता है)। सन्तुलित बलों का प्रभाव—किसी वस्तु पर लगने वाले दो या दो से अधिक परस्पर संतुलित बल निम्नलिखित प्रभाव उत्पन्न करते हैं—
(i) वस्तु की आकृति में परिवर्तन हो सकता है।
(ii) वस्तु के आकार, लम्बाई, क्षेत्रफल तथा आयतन में परिवर्तन हो सकता है।
(iii) किसी बिन्दु के परितः वस्तु का घूर्णन हो सकता है।
न्यूटन का गति-विषयक तृतीय नियम (Newton’s Third Law of Motion)
इसके अनुसार, “जब कोई वस्तु किसी दूसरी वस्तु पर बल लगाती है तो दूसरी वस्तु भी पहली वस्तु पर उतना ही बल विपरीत दिशा में लगाती है।”
इन दो बलों में से एक को क्रिया (action) तथा दूसरे को प्रतिक्रिया (reaction) कहते हैं, अत: इसे क्रिया-प्रतिक्रिया का नियम भी कहते हैं। इसके अनुसार, “प्रत्येक क्रिया की उसके बराबर, परन्तु विपरीत दिशा में प्रतिक्रिया होती है।”
उदाहरण 1. तैरते समय—तैराक (मनुष्य) तैरते समय पानी को पीछे की ओर धकेलता है (क्रिया); परिणामस्वरूप पानी तैराक (मनुष्य) को आगे की ओर धकेलता है (प्रतिक्रिया)। स्पष्ट है तैराक जितनी तेजी से पानी को पीछे की ओर धकेलेगा, वह उतना ही तेज तैरेगा।
उदाहरण 2. बन्दूक से गोली छोड़ने पर—जब बन्दूक से गोली छोड़ी जाती है तो गोली क्रिया बल के कारण आगे की ओर बढ़ती है। परन्तु गोली भी बन्दूक पर विपरीत दिशा में इतना ही प्रतिक्रिया बल लगाती है। अतः बन्दूक स्वयं पीछे की ओर भागती है तथा बन्दूक चलाने वाले व्यक्ति को पीछे की ओर धक्का लगता है। यहाँ यह ध्यान देने योग्य है कि-
(i) क्रिया व प्रतिक्रिया बल सदैव युग्म में होते हैं।
(ii) क्रिया तथा प्रतिक्रिया बल सदैव अलग-अलग वस्तुओं पर लगते हैं।
(iii) क्रिया तथा प्रतिक्रिया बल सदैव विपरीत दिशाओं में लगते हैं।
संवेग (Momentum)
यदि एक हल्की तथा दूसरी भारी वस्तु समान वेग से चल रही हो तो हल्की वस्तु को रोकने में कम बल लगाना पड़ता है जबकि भारी वस्तु को रोकने में अधिक बल लगाना पड़ेगा। यदि वस्तुओं के द्रव्यमान बराबर हों, परन्तु एक वस्तु अधिक वेग से चल रही हो तथा दूसरी कम वेग से चल रही हो तो अधिक वेग से चलने वाली वस्तु को रोकने में अधिक बल लगाना पड़ेगा।
स्पष्टतः किसी गतिमान वस्तु को रोकने के लिए लगाया गया बल, वस्तु के द्रव्यमान तथा उसके वेग दोनों पर निर्भर करता है।
अतः किसी वस्तु का संवेग उसके द्रव्यमान तथा वेग के गुणनफल के बराबर होता है। इसे P से प्रदर्शित करते हैं। यह एक सदिश राशि है तथा इसकी दिशा वही होती है जो वेग की होती है।
बल का आवेग (Impulse of Force)
जब कोई बल (F) किसी वस्तु पर थोड़े समयान्तराल (At) के लिए लगता है तो बल (F) तथा समयान्तराल (Af) के गुणनफल की बल का आवेग कहते हैं। आवेग एक सदिश राशि है। आवेग की दिशा वही होती है जो बल की होती है।
संवेग संरक्षण का नियम (Principle of Conservation of Momentum)
इस नियमानुसार, “यदि दो अथवा दो से अधिक वस्तुओं के समुदाय पर कोई बाह्य बल कार्य न करे तो समुदाय का संयुक्त संवेग नियत रहता है।” इसे संवेग संरक्षण का नियम कहते हैं।
उदाहरण- जब बन्दूक से गोली छोड़ी जाती है, बन्दूक गोली को अधिक वेग से आगे की ओर फेंकती है। इससे गोली में आगे की दिशा में संवेग उत्पन्न हो जाता है। गोली भी बन्दूक पर प्रतिक्रिया-बल लगाती है, जिससे कि बन्दूक में पीछे की दिशा में उतना ही संवेग उत्पन्न हो जाता है तथा वह पीछे की ओर हटती है। यही कारण है कि गोली छोड़ने वाले को पीछे की ओर धक्का लगता है।
जड़त्व तथा प्रतिक्रिया (Intertia And Reaction)
चूँकि किसी स्थिर वस्तु को गतिमान करने के लिए उस पर बल लगाना पड़ता है। किसी बल की प्रतिक्रिया भी, बल के विपरीत होती है। इन तथ्यों से ऐसा भ्रम उत्पन्न होता है कि जड़त्व तथा प्रतिक्रिया ऐसे बल हैं, जो किसी वस्तु को गतिमान करने के लिए लगाये गये बल का विरोध करते हैं।
जड़त्व कोई बल नहीं है अर्थात् किसी वस्तु का जड़त्व उसे गतिमान करने के लिए लगाये गये बल का कोई विरोध नहीं करता है। किसी वस्तु पर लगाया गया सूक्ष्मातिसूक्ष्म बल भी वस्तु को गतिमान करता है। जड़त्व वस्तु का वह गुण है, जो यह निर्धारित करता है कि कि लगाये गये बल से वस्तु में उत्पन्न त्वरण कितना होगा, अतः जड़त्व, प्रतिक्रिया से नितान्त भिन्न अवधारणा है।